विवरण:
श्री खेतेश्वर भवन (हॉल एवं धर्मशाला), आसोतरा
पद का नाम: | कंप्यूटर ओपेरटर |
योग्यता: | BCA, MCA, PGDCA, Bsc IT या कोई अन्य कंप्यूटर डिग्री/प्रमाणपत्र। |
अनुभव: | 2 से 5 वर्ष |
संपर्क: | श्री रामसिंहजी मोटूसिंहजी राजपुरोहित (+91 98294 64887) |
परम् आराध्य ब्रह्मांशावतार खेतारामजी महाराज का जन्म विक्रम संवत् 1969 मास वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि सोमवार को तदनुरूप दिनांक 22 अप्रेल सन् 1912 को सांचौर तहसील के बिजरौल खेड़ा नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिताजी का नाम श्री शेरसिंहजी व माताजी का नाम श्रीमती सिणगारी देवी था जो कि मूलतः बाड़मेर जिले के पचपदरा तहसील के सराणा नामक गांव के रहने वाले थे ।
सराणा राजपुरोहित बाहुल्य गांव है जहां उदालक ऋषि कुल उदीच (उदेश) गौत्र के श्री शेरसिंहजी सराणा में ही निवास करते थे।
मारवाड़ में उन दिनों अकाल आम बात थी। ऐसे में आजीविका के लिए रोजगार हेतु लोग प्रवास गमन करते थे। श्री शेरसिंहजी भी अपनें परिवार सहित बिजरौल खेड़ा पर मेघाजी चैधरी के कृषि कुंए पर रहते और कृषि कार्य करते थे। उनके परिवार में श्री भोमारामजी और हुक्मारामजी दो पुत्र थे और तीसरी संतान के रूप में माता श्रीमती सिणगारी देवी की पावन कोख से खेतारामजी महाराज का अवतरण हुआ। कहते है उस वर्ष सांचौर परगने में अच्छी बारिश हुई और क्षेत्र भरपूर फसल पैदावार हुई। फिर कुछ अरसे बाद शेरसिंहजी का परिवार पुनः अपने पैतृक गांव सराणा आ बसा।
खेतारामजी महाराज के बचपन में ही माता-पिता का साया उठ गया था। लेकिन तीनों भाईयों में सबसे छोटे होने के कारण घर परिवार में भरपूर लाड़-प्यार मिला।
बालक खेतारामजी को बचपन से ही भजन कीर्तन भक्ति-भाव में पूर्ण रूचि एवं आस्था थी। इसी भाव से खेतारामजी महाराज जागरण-कीर्तन जहां भी होता वहां बड़े ही श्रद्धा भाव से पहुंचते और भजन, ज्ञान-गंगा का श्रवण करते।
एक दिन किसी चौधरी बंधु के निवास पर जागरण चल रहा था। जहां एक पूज्य मलंगशाह सांईजी जो कि सांईजी की बेरी (गांव कुशीप सरहद) नामक स्थान से पधारे हुए थे एवं बालक खेतारामजी भी उसी जागरण में उपस्थित थे। रात-भर जगते हुए भजन-कीर्तन में भाग लिया और फिर ...
किशोर वय खेतारामजी बचपन में गाय बैल चराते थे और कृषि कार्य में हाथ बटाते थे। उनके मन मस्तिष्क में हर समय राम धुन ही रहती थी। दिन के वक्त समय अभाव के कारण रात को बैल खूंटे से बांधकर और भोजन इत्यादि से निवृत होकर जब परिजन सो जाते थे तब खेतारामजी महाराज प्रतिदिन रात को सांईजी की बेरी भजन कीर्तन के लिए जाते थे और दूसरे दिन सुबह पुनः अपनी दिनचर्या के अनुरूप गाय-बैल चरानें और कृषि कार्य में व्यस्त हो जाते थे।
सांईजी महाराज ने बालक खेतारामजी की भक्तिभावना और आस्था से प्रसन्न थे और एक दिन खेतारामजी की परीक्षा लेने की सोची। और खेतारामजी को यह बात बताई कि तुम रात को झाड़ियों से होते हुए दुरूह रास्ते से यहां आते हो यह स्थान पहाड़ियों से घिरा हुआ है बीच में खतरनाक जानवर भी रहते है अपना ध्यान रखना।
खेतारामजी ने भी हंस कर इस प्रश्न का उत्तर दिया कि जिसके सर पर समर्थ गुरू का हाथ हो, भला कोई हिंसक जानवर उसका क्या बिगाड़ सकता है।
चौमासा की एक रात, आसमान में घनघोर घटाएं छायी हुई थी, रह-रह कर बिजली चमक रही थी मगर अपनी धुन के पक्के खेतारामजी को तो भजन के लिए सांईजी की बेरी जाना ही था सो रात को घर से निकल पड़े। वो लगभग पहुंचने ही वाले थे कि बीच रास्ते में अचानक उन्हें कुछ असामान्य सा महसूस हुआ, उनके कदम रुक गये, चारों तरफ सन्नाटा था। अचानक आसमान से बिजली की तेज चमक के साथ मेघगर्जना हुई।
बिजली के प्रकाश में खेतारामजी महाराज ने देखा कि एक विशाल व्याघ्र (बाघ) रास्ते में बैठा हुआ था। लेकिन खेतारामजी तनिक भी घबराये नहीं और अगले ही पल उस बाघ के सामने दण्डवत् हो गये । तभी सांईजी महाराज की आवाज आयी खेतारामजी ने ऊपर देखा तो सांईजी महाराज खड़े दिखे जो हंसते हुए कह रहे थे कि बालक तू परीक्षा में उत्तीर्ण हो गया। (आठ सिद्धियों में एक सिद्धि यह होती है कि साधक अपनें प्राणों का संचार किसी अन्य प्राणी में कर सकता है।)
सराणा गांव के अनुभवी और वरिष्ठजनों को लगा कि बालक खेतारामजी महाराज गाय-बैल चराते हुए चेतावनी और विरक्ति के भजन फकीरियां बड़े ही तारतम्य के साथ भक्तिभाव में डूब कर गा रहे है।
उन्हें लगा ये बात किसी सामान्य बालक के बस की नहीं है। तो उन्होंने बालक खेतारामजी पर ध्यान रखा। तो दो-तीन दिन उन्होंने पाया कि रात को जब सब सो जाते है तब खेतारामजी कहीं बाहर निकल जाते है और पवन वेग से चलते है। यह बात जब उन्होंने श्री भोमजी और हुक्माजी को बताई तो उन्होंने ज्यादा गौर नहीं किया।
सराणा गांव के ही पंडित भवानीशंकरजी के साथ बालक खेतारामजी कभी-कभी अध्यात्म और ज्योतिष ज्ञान पर चर्चा किया करते थे। एक दिन प्रातः खेतारामजी जंगल से शौच निवृत होकर लौट रहे थे तो पंडितजी के घर जानें का मानस बनाया । वहां जाकर पंडित जी से निवेदन किया कि वो पानी का लोटा लेकर पधारें और हाथ धुलाएं। पंडित जी भी पानी लेकर आ गये और ज्योंही खेतारामजी महाराज के हस्त प्रक्षालन के समय पंडितजी ने देखा कि बालक के हाथों की उंगलियों में विचित्र चक्र थे।
पंडित जी ने खेतारामजी को अन्दर बैठाकर तसल्ली से पूछा भाई खेताराम मैं तुम्हारे हाथों को देखना चाहता हूं। पंडितजी ने जब खेतारामजी महाराज के हाथ देखे तो हस्तरेखा मर्मज्ञ पंडितजी को बड़ा अचरज हुआ कि खेतारामजी के हाथों की सभी उंगलियों पर चक्र बने हुए थे तब पंडितजी ने खेतारामजी को बताया कि जिस किसी जातक के दोनों हाथों में पूरे दस चक्र हो वो या तो चक्रवर्ती सम्राट बनता है या कोई महान् योगी/तपस्वी बनता है। तब खेतारामजी ने बड़े ही विनादीभाव सेे कहा कि पंडितजी खेती बाड़ी का काम, गाय-बैल चरावतां थकां काहे का चक्रवर्ती सम्राट बण सकां….हां भक्तिभाव में म्हनें घणों चाव है। समय गुजरता गया और एक दिन किशोर खेतारामजी महाराज ने अपने घर वालों को आपने मन की बात बता ही दी कि उन्हें भगवद्भक्ति करने की अनुमति दी जायें। घर वालों ने खेतारामजी की बात पर गौर नहीं किया और सुनी अनसुनी कर दी।
ऊपर से खेतारामजी को सांसारिक बंधन में बांधने के लिए भिण्डाकुंआ गांव के एक सीहा परिवार में खेतारामजी की सगाई भी तय कर दी। खेतारामजी इस बात पर परेशान थे। घर वाले उनकी बात मान नहीं रहे थे और उनका तो ध्यान हर समय भगवान की भक्ति में ही गुजरता था।
खेतारामजी महाराज के सांसारिक विरक्ति की बात जब कोई परिजन सुनने को तैयार नहीं हुए तो एक दिन क्रोधित होकर एक बोतल केरोसिन पी गए और रात का समय था घर के कक्ष में अन्दर से कुण्डी लगाकर सो गये।
परिजनों ने बहुत आग्रह किया लेकिन कक्ष नहीं खोला । ऐसे में सारे परिजन चिन्तित थे और रात भर व्यथा में भगवान का स्मरण करते-करते उन्होंने तय किया कि यदि आज खेताराम के कुछ नहीं होता है तो हम इसे इसकी इच्छा के अनुरूप भक्ति करने की अनुमति दे देंगे।
दूसरे दिन प्रातः सूर्योदय के समय सारे परिजन आंगन में बैठे हुए थे कि खेतारामजी कक्ष से बाहर निकले , गुमसुम थे लेकिन स्वस्थ थे। परिजनों ने इसे एक दिव्य चमत्कार माना और खेतारामजी महाराज को उनकी इच्छा के अनुरूप भगवद्भक्ति के लिए सहमत हो गये।
परिवार से अनुमति मिलने के बाद खेतारामजी महाराज ने सोचा कि वो कन्या जिसकी सगाई उनके साथ सम्पन्न हो गयी थी उसे धर्म की बहन बना कर बंधन मुक्त होना जरूरी है। तब कहते है कि खेतारामजी महाराज ने मणिहारी का सामान बेचने के बहाने उस गांव जाने का एक रास्ता खोजा और एक दिन यकायक वो घड़ी आ ही गयी जिसका उन्हें इन्तजार था।
वो कन्या जिसकी उनके साथ सगाई की हुई थी वो पनघट से पानी की मटकी लेकर आती दिखाई दी। खेतारामजी महाराज ने अपने पास उसके निमित्त लाई हुई चुनरी बाहर निकाली और भिण्डाकुंआ गांव के आम चैहटे पर उस कन्या के सर पर हाथ रखते हुए उसे चुनरी ओढाकर बहन शब्द से संबोधित किया । यह बात पूरे गांव में और कुछ ही दिनों में पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय बन गयी क्योंकि उससे पहले ऐसा कहीं हुआ नहीं था। पर जो होनी को मंजूर हो उसे कौन टाल सकता है।
सांसारिक बंधन से मुक्त होकर खेतारामजी महाराज सांईजी की बेरी पर रहते थे वहीं पर एक दिन परम् आराध्य समर्थ गुरू गुणेशानन्दजी महाराज आये हुए थे। बालक खेतारामजी महाराज की भक्ति भावना से प्रेरित होकर पूज्य गुणेशानंदजी ने फरमाया कि खेताराम अब तुम्हें किसी को अपना गुरू बना लेना चाहिये। तभी सांईजी महाराज बोल पड़े कि गुणेशानंदजी महाराज आपसे बढ़कर योग्य गुरू खेताराम को कहां मिलेंगे इसलिए आप ही इन्हें अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें महाराज।
तब कहते है गुरू गुणेशानंदजी महाराज ने ही खेतारामजी महाराज को दिल्ली में यमुना के किनारे ऋषि कर्म करवाया और शास्त्रसम्मत विधि विधान से एक सन्यासी के रूप में खेतारामजी महाराज को दीक्षित किया।
गृहस्थ त्याग कर एक सन्यासी के रूप में भगवद् प्राप्ति के लिए तप साधना हेतु सर्वप्रथम पूज्य खेतारामजी महाराज ने सांईजी की बेरी के पास आसोतरा गांव की सरहद स्थित पीपलिया नामक स्थान को चुना और वहां बारह वर्षों तक कठोर तपस्या की। जहां आस-पास के क्षेत्र के 36 कौम के लोग आते, भजन कीर्तन होता और रात के समय जैसा कि सांईजी की बेरी और पीपलिया के बीच स्थित पर्वत श्रृंखला में व्याग्र, चीते दहाड़ते थे लेकिन भगवद्भक्ति में लीन पूज्य पूज्य खेतारामजी महाराज अविचल तपस्या करते रहे। निकटवर्ती बम्बराळ के पहाड़ों में मां जगदम्बा का एक मंदिर है जहां पूजा अर्चना के लिए जाते।